भारतीय भाषा उत्सव 2023 - महाकवि सुब्रमण्य भारती के जन्म जयंती पर जन शिक्षण संस्थान विकास भारती दुमका द्वारा

JAN SHIKSHAN SANSTHAN, DUMKA, JHARKHAND
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 आज दिनांक 11 दिसंबर 2023 को कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय, राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद, भारत सरकार के दिशा निर्देश पर जन शिक्षण संस्थान विकास भारती दुमका द्वारा  महाकवि सुब्रमण्य भारती के जन्म जयंती पर  "भारतीय भाषा उत्सव 2023" के तहत भाषा स्टॉल, भाषा प्रश्नोत्तरी, स्थानीय स्वस्थ पाक कला प्रदर्शनी, सांस्कृतिक कार्यक्रम, विभिन्न भाषाओं में भाषण प्रतियोगिता  का आयोजन किया गया। 


इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संथाल परगना ओल चिकी को-ऑर्डिनेटर कमिश्नर मुर्मू के द्वारा स्थानीय भारतीय भाषा संथाली, लिपि ओल चिकी के बारे में विस्तृत जानकारी दिया गया । स्थानीय स्वस्थ पाक कला प्रदर्शनी में श्रीमती सुबासी देवी, तृप्ति रूपम, पार्वती देवी, रोनिता हेंब्रम के द्वारा स्थानीय खाद्य सामग्री का स्टॉल लगाया गया। कई लड़कियों एवं महिलाओं द्वारा संथाली एवं स्थानीय भाषा में भाषण दिया गया।


कार्यक्रम के प्रारंभ में जन शिक्षण संस्थान विकास भारतीय दुमका के प्रभारी निदेशक श्रीमती अन्नू ने कहा कि सुब्रमण्य भारती (Subramania Bharati) एक महान तमिल कवि, पत्रकार, समाजसेवी, और स्वतंत्रता सेनानी थे जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय में अपनी कला और रचनात्मक योगदान के लिए प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 11 दिसम्बर 1882 को तंजावुर, तमिलनाडु, ब्रिटिश भारत में हुआ था और उनका नाम पहले सुब्रमण्यम था, जिसे बाद में उन्होंने सुब्रमण्य भारती बना लिया।


सुब्रमण्य भारती ने अपने जीवन में लगभग 2000 कविताएं, 200 लघुकथाएँ, और कई पुस्तकें लिखीं। उनकी कविताएं और रचनाएं भारतीय साहित्य के लिए महत्वपूर्ण हैं और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रभक्ति, समाजसेवा, और मानवाधिकारों के प्रति अपनी सामर्थ्यपूर्ण आवश्यकता को उजागर किया।


सुब्रमण्य भारती के द्वारा रचित कविताएं भारतीय समाज की समस्याओं, स्वतंत्रता के लिए समर्पण, और उत्कृष्टता की प्रेरणा से भरी हुई हैं। उन्होंने अपने समय के सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक मुद्दों पर भी अपनी राय दी और उन्होंने एक नए भारत की आवश्यकता को सार्थकता से भरा हुआ दिखाया।


सुब्रमण्य भारती ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को स्वतंत्रता के लिए उत्साहित किया। उन्होंने 1921 में कन्नड़ में "वन्दे मातरम्" का अनुवाद किया और इसे राष्ट्रगान के रूप में प्रस्तुत किया।


महाकवि सुब्रह्मण्यम भारती बहुभाषावाद के प्रतीक हैं जो भारत की विशेषता है। वह 3 विदेशी भाषाओं सहित 32 भाषाएँ जानते थे। उन्होंने अंग्रेजी में शानदार कविताएं और निबंध लिखे लेकिन उन्हें तमिल कवि और पत्रकार होने पर गर्व था। उनका मानना ​​था कि तमिल और अन्य सभी भारतीय भाषाएँ किसी भी तरह से अंग्रेजी से कमतर नहीं हैं।


सुब्रमण्य भारती का योगदान आज भी भारतीय साहित्य और सामाजिक चेतना में महत्वपूर्ण है, और उन्हें एक महान कवि और समाजसेवी के रूप में याद किया जाता है।


इसी कड़ी में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संथाल परगना ओल चिकी को-ऑर्डिनेटर कमिश्नर मुर्मू ने कहा कि ओल चिकी लिपि के जन्मदाता पंडित रघुनाथ मुर्मू का जन्म  5 मई 1905 को उड़ीसा में हुआ था।  इन्होंने 1925 में ओल चिकी लिपि का आविष्कार किया। यह लिपि भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल है। कमिश्नर मुर्मू ओल चिकी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए निरंतर प्रयास करते रहे हैं। और आज के कार्यक्रम में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 


इस कार्यक्रम को सफल बनाने में जन शिक्षण संस्थान विकास भारतीय दुमका के प्रभारी निदेशक श्रीमती अन्नू, कार्यक्रम पदाधिकारी दीपक कुमार सिंह  सहायक कार्यक्रम पदाधिकारी दर्शन हेंब्रम (आजीविका), एम.आई.एस. श्रीराम कुशवाहा, आनंद कुमार, राजकुमार हेम्ब्रम, देवराम हांसदा, शिव मरांडी, सुबासी देवी, तृप्ति रूपम, पार्वती देवी, रोनिता हेंब्रम, कुमार सुंदरम, पूनम सोरेन, उषा टुडू, पानमुनि मरांडी, हेमंती मुर्मू, ललिता टुडू, ज्योत्सना रानी, खुशबू मुर्मू, शर्मिला बेसरा, पूजा कुमारी, चंदा कुमारी, सोनी कुमारी, शांति हांसदा, गीता कुमारी, रिमझिम कुमारी के साथ सैकड़ो प्रतिभागियों ने अहम भूमिका निभाई।




















































































































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